Kabir Ke Dohe
जल ज्यों प्यारा माहरी, लोभी प्यारा दाम ।
माता प्यारा बारका, भगति प्यारा नाम ।।
जैसे मछ्ली को पानी प्यारा लगता है, लोभी को धन प्यारा लगता है, माता को पुत्र प्यारा लगता है वैसे ही भक्त को भगवान प्यारे लगते है ।
माता प्यारा बारका, भगति प्यारा नाम ।।
जैसे मछ्ली को पानी प्यारा लगता है, लोभी को धन प्यारा लगता है, माता को पुत्र प्यारा लगता है वैसे ही भक्त को भगवान प्यारे लगते है ।
Kabir Ke Dohe
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जब लग नाता जगत का, तब लग भागिति न होय ।
नाता जोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक संसार का संबंध है यानी मन सांसारिक वस्तुओं में आसक्त है तब तक भक्ति नहीं हो सकती जो संसार का संबंध तोड़ दे और भगवान का भजन करे, वही भक्त होते हैं ।
नाता जोड़े हरि भजे, भगत कहावें सोय ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक संसार का संबंध है यानी मन सांसारिक वस्तुओं में आसक्त है तब तक भक्ति नहीं हो सकती जो संसार का संबंध तोड़ दे और भगवान का भजन करे, वही भक्त होते हैं ।
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आहार करे मन भावता, इंदी किए स्वाद ।
नाक तलक पूरन भरे, तो का कहिए प्रसाद ।।
जो मनुष्य इंद्रियों के स्वाद के लिए पूर्ण नाक तक भरकर खाये तो प्रसाद कहाँ रहा ? तात्पर्य यह है कि भोजन या आहार शरीर की रक्षा के लिए सोच समझकर करें तभी वह उत्तम होगा । अर्थात सांसारिक भोग उपभोग ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करें ।
नाक तलक पूरन भरे, तो का कहिए प्रसाद ।।
जो मनुष्य इंद्रियों के स्वाद के लिए पूर्ण नाक तक भरकर खाये तो प्रसाद कहाँ रहा ? तात्पर्य यह है कि भोजन या आहार शरीर की रक्षा के लिए सोच समझकर करें तभी वह उत्तम होगा । अर्थात सांसारिक भोग उपभोग ईश्वर का प्रसाद समझकर ग्रहण करें ।
Kabir Ke Dohe
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नहीं शीतल है चंद्रमा, हिंम नहीं शीतल होय ।
कबीरा शीतल सन्त जन, नाम सनेही सोय ।।
कबीर जी कहते है कि न तो शीतलता चंद्रमा में है न ही शीतलता बर्फ में है वही सज्जन शीतल हैं जो परमात्मा के प्यारे हैं अर्थात वास्तविकता मन की शांति ईश्वर-नाम में है ।
कबीरा शीतल सन्त जन, नाम सनेही सोय ।।
कबीर जी कहते है कि न तो शीतलता चंद्रमा में है न ही शीतलता बर्फ में है वही सज्जन शीतल हैं जो परमात्मा के प्यारे हैं अर्थात वास्तविकता मन की शांति ईश्वर-नाम में है ।
Kabir Ke Dohe
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जबही नाम हिरदे धरा, भया पाप का नाश ।
मानो चिंगारी आग की, परी पुरानी घास ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान का नाम लेते ही पाप का नाश हो जाता है जिस तरह अग्नि की चिंगारी पुरानी घास पर पड़ते ही घास जल जाती है इसी तरह ईश्वर का नाम लेते ही सारे पाप दूर हो जाते हैं ।
मानो चिंगारी आग की, परी पुरानी घास ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान का नाम लेते ही पाप का नाश हो जाता है जिस तरह अग्नि की चिंगारी पुरानी घास पर पड़ते ही घास जल जाती है इसी तरह ईश्वर का नाम लेते ही सारे पाप दूर हो जाते हैं ।
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जा कारण जग ढूँढ़िया, सो तो घट ही मांहि ।
परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं ।।
जिस भगवान को तू सारे संसार में ढूँढता फिरता है । वह मन में ही है । तेरे अंदर भ्रम का परदा दिया हुआ है इसलिए तुझे भगवान दिखाई नहीं देते ।
परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं ।।
जिस भगवान को तू सारे संसार में ढूँढता फिरता है । वह मन में ही है । तेरे अंदर भ्रम का परदा दिया हुआ है इसलिए तुझे भगवान दिखाई नहीं देते ।
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ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ॥
जिस तरह तिलों में तेल और चकमक पत्थर में आग छुपी रहती है वैसे हीं तेरा सांई (मालिक) परमात्मा तुझमें है अगर तू जाग सकता है तो जाग और अपने अंदर ईश्वर को देख और अपने आप को पहचान ।
तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ॥
जिस तरह तिलों में तेल और चकमक पत्थर में आग छुपी रहती है वैसे हीं तेरा सांई (मालिक) परमात्मा तुझमें है अगर तू जाग सकता है तो जाग और अपने अंदर ईश्वर को देख और अपने आप को पहचान ।
Kabir Ke Dohe
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छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार ।
हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार ।
परमात्मा का सच्चा नाम दूध के समान है और पानी के जैसा इस संसार का व्यवहार है । पानी मे से दूध को अलग करने वाला हंस जैसा साधू (सच्चा भक्त) होता है जो दूध को पानी मे से छानकर पी जाता है और पानी छोड़ देता है ।
हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार ।
परमात्मा का सच्चा नाम दूध के समान है और पानी के जैसा इस संसार का व्यवहार है । पानी मे से दूध को अलग करने वाला हंस जैसा साधू (सच्चा भक्त) होता है जो दूध को पानी मे से छानकर पी जाता है और पानी छोड़ देता है ।
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सुमिरत सूरत जगाय कर, मुख से कछु न बोल ।
बाहर का पट बंद कर, अन्दर का पट खोल ॥
एकचित्त होकर परमात्मा का सुमिरन कर और मुँह से कुछ न बोल, तू बाहरी दिखावे को बंद कर के अपने सच्चे दिल से ईश्वर का ध्यान कर ।
बाहर का पट बंद कर, अन्दर का पट खोल ॥
एकचित्त होकर परमात्मा का सुमिरन कर और मुँह से कुछ न बोल, तू बाहरी दिखावे को बंद कर के अपने सच्चे दिल से ईश्वर का ध्यान कर ।
Kabir Ke Dohe
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सुमिरन सों मन लाइए, जैसे नाद कुरंग ।
कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्राण तजे तेहि संग ॥
कबीर साहब कहते हैं की भक्त ईश्वर की साधना में इस प्रकार मन लगाता है, उसे एक क्षण के लिए भी भुलाता नहीं, यहाँ तक की प्राण भी उसी के ध्यान में दे देता है । अर्थात वह प्रभु भक्ति में इतना तल्लीन हो जाता है की उसे शिकारी (प्राण हरने वाला) के आने का भी पता नहीं चलता ।
कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्राण तजे तेहि संग ॥
कबीर साहब कहते हैं की भक्त ईश्वर की साधना में इस प्रकार मन लगाता है, उसे एक क्षण के लिए भी भुलाता नहीं, यहाँ तक की प्राण भी उसी के ध्यान में दे देता है । अर्थात वह प्रभु भक्ति में इतना तल्लीन हो जाता है की उसे शिकारी (प्राण हरने वाला) के आने का भी पता नहीं चलता ।
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