Kabir Ke Dohe

kabir ke dohe
Kabir Ke Dohe: Kabir Is A Personality Rather Than A Person. Kabir Who Is Neither A Hindu Nor A Muslim. Kabir Who, Despite Being Worldly, Is Above Caste And Religion. Kabir Ke Sadabahar Dohon Se, Jinhen Sun Kar Jeene Ki Sahi Rah Samjh Aati Hai Aur Har Muskil Asaan Lagti Hai. Kabir Ke Dohe, Kabir Das Ke Dohe, Kabir Ke Dohe In Hindi, Kabir Das Ji Ke Dohe, Kabir Dohe, Sant Kabir Ke Dohe, Dohe Kabir, Dohe Kabir Ke, Hindi Me Kabeer Ke Dohe
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय ।
इक दिन ऐसा आएगा, मै रौंदूंगी तोय ॥

मिट्टी कुम्हार से कहती है कि तू मुझे क्या रौंदता है । एक दिन ऐसा आएगा कि मै तुझे रौंदूंगी । अर्थात मृत्यु के पश्चात मनुष्य का शरीर इसी मिट्टी मे मिल जाएगा ।

Kabir Ke Dohe
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कबीरा सोया क्या करे, उठी न भजे भगवान ।
जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥

कबीरदास जी कहते हैं की हे प्राणी ! तू सोता रहता है (अपनी चेतना को जगाओ) उठकर भगवान को भज क्यूंकि जिस समय यमदूत तुझे अपने साथ ले जाएंगे तो तेरा यह शरीर खाली म्यान की तरह पड़ा रह जाएगा ।

Kabir Ke Dohe
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पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर हरि नाम बिनु, मुक्ति कैसे होय ॥

प्रतिदिन के आठ पहर में से पाँच पहर तो काम धन्धे में खो दिये और तीन पहर सो गया । इस प्रकार तूने एक भी पहर हरि भजन के लिए नहीं रखा, फिर मोक्ष कैसे पा सकेगा ।

Kabir Ke Dohe
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कबीरा ते नर अन्ध हैं, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥

कबीरदास जी कहते हैं की वे नर अंधे हैं जो गुरु को भगवान से छोटा मानते हैं क्यूंकि ईश्वर के रुष्ट होने पर एक गुरु का सहारा तो है लेकिन गुरु के नाराज होने के बाद कोई ठिकाना नहीं है ।

Kabir Ke Dohe
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जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।
जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥

जहाँ दया है वहीं धर्म है और जहाँ लोभ है वहाँ पाप है, और जहाँ क्रोध है वहाँ काल (नाश) है । और जहाँ क्षमा है वहाँ स्वयं भगवान होते हैं ।

Kabir Ke Dohe
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लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिर पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

कबीरदास जी ने कहा है की हे प्राणी, चारो तरफ ईश्वर के नाम की लूट मची है, अगर लेना चाहते हो तो ले लो, जब समय निकल जाएगा तब तू पछताएगा । अर्थात जब तेरे प्राण निकल जाएंगे तो भगवान का नाम कैसे जप पाएगा ।

Kabir Ke Dohe
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कबीर माला मनहि कि, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख ॥

कबीरदास ने कहा है कि माला तो मन कि होती है बाकी तो सब लोक दिखावा है । अगर माला फेरने से ईश्वर मिलता हो तो रहट के गले को देख, कितनी बार माला फिरती है । मन की माला फेरने से हीं परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है ।

Kabir Ke Dohe
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माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर
आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर

इच्छाएं कभी नहीं मरतीं और दिल कभी नहीं भरता, सिर्फ शरीर का ही अंत होता है. उम्मीद और किसी चीज की चाहत हमेशा जीवित रहते हैं.

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चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए

चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, जो कलेजे में दर्द उठाता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.

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पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए
ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए

कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है. बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है.

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