Kabir Ke Dohe

फुटो आँख विवेक की, लखें न संत असंत ।
जिसके संग दस बीच है, ताको नाम महन्त ।।
जिसके ज्ञान रूपी नैन नष्ट हो गए हैं वह सज्जन और दुर्जन का अंतर नहीं बता सकता है और सांसारिक मनुष्य जिसके साथ दस-बीस चेले देख लेता है वह उसको ही महन्त समझा करता है ।
जिसके संग दस बीच है, ताको नाम महन्त ।।
जिसके ज्ञान रूपी नैन नष्ट हो गए हैं वह सज्जन और दुर्जन का अंतर नहीं बता सकता है और सांसारिक मनुष्य जिसके साथ दस-बीस चेले देख लेता है वह उसको ही महन्त समझा करता है ।
Kabir Ke Dohe
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बूँद पड़ी जो समुद्र में, ताहि जाने सब कोय ।
समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ।।
यह तो सम्पूर्ण जीव जानते हैं कि समुद्र में पड़ी बूंदे उसमें समा जाती हैं, किन्तु यह विवेकी ही जानता है कि किस प्रकार मन रूपी समुद्र में बिंदुरूपी जीवात्मा परमात्मा में लीन हो जाते है ।
समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय ।।
यह तो सम्पूर्ण जीव जानते हैं कि समुद्र में पड़ी बूंदे उसमें समा जाती हैं, किन्तु यह विवेकी ही जानता है कि किस प्रकार मन रूपी समुद्र में बिंदुरूपी जीवात्मा परमात्मा में लीन हो जाते है ।
Kabir Ke Dohe
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माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डार दे, मनका मनका फेर ।।
माला फेरते-फेरते युग व्यतीत हो गया, परंतु जीव के हृदय में कोई नवीन परिवर्तन नहीं हुआ । कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीव, मैंने माला के रूप में ईश की बहुत दिनों तक आराधना कर ली और अब इस आराधना को छोड़कर हृदय से भगवान की थोड़े समय तक आराधना कर ।
कर का मनका डार दे, मनका मनका फेर ।।
माला फेरते-फेरते युग व्यतीत हो गया, परंतु जीव के हृदय में कोई नवीन परिवर्तन नहीं हुआ । कबीरदास जी कहते हैं कि हे जीव, मैंने माला के रूप में ईश की बहुत दिनों तक आराधना कर ली और अब इस आराधना को छोड़कर हृदय से भगवान की थोड़े समय तक आराधना कर ।
Kabir Ke Dohe
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मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय ।
बार-बार के मूड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि सिर के बाल कटवाने से यदि भगवान प्राप्त हो जाए तो सब कोई सिर के बाल कटवा कर भगवान को प्राप्त कर ले । जिस प्रकार भेड़ का तमाम शरीर कई बार मूड़ा जाता है तब भी वह बैकुण्ठ को नहीं प्राप्त कर सकता है ।
बार-बार के मूड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि सिर के बाल कटवाने से यदि भगवान प्राप्त हो जाए तो सब कोई सिर के बाल कटवा कर भगवान को प्राप्त कर ले । जिस प्रकार भेड़ का तमाम शरीर कई बार मूड़ा जाता है तब भी वह बैकुण्ठ को नहीं प्राप्त कर सकता है ।
Kabir Ke Dohe
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माया छाया एक सी, बिरला जानै कोय ।
भागत के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय ।।
माया और छाया एक समान है इसको कोई बिरला ही जानता है ये अज्ञानियों के पीछे लग जाती है तथा ज्ञानियों से दूर भाग जाती है ।
भागत के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय ।।
माया और छाया एक समान है इसको कोई बिरला ही जानता है ये अज्ञानियों के पीछे लग जाती है तथा ज्ञानियों से दूर भाग जाती है ।
Kabir Ke Dohe
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मूर्ख मूढ़ कुकर्मियों, नख-सिख पाखर आहि ।
बन्धन कारा का करे, जब बाँधन लागे ताहि ।।
जिस मनुष्य को समझाने तथा पढ़ाने से भी कुछ ज्ञान न हो उस मनुष्य को समझाना भी अच्छा नहीं क्योंकि उस पर आपकी बातों का कुछ भी प्रभाव नहीं होगा ।
बन्धन कारा का करे, जब बाँधन लागे ताहि ।।
जिस मनुष्य को समझाने तथा पढ़ाने से भी कुछ ज्ञान न हो उस मनुष्य को समझाना भी अच्छा नहीं क्योंकि उस पर आपकी बातों का कुछ भी प्रभाव नहीं होगा ।
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माँगन-मरण समान है, मति माँगो कोई भीख ।
माँगन ते मरना भला, यह सतगुरु की सीख ।।
माँगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भीख मत माँगो । सतगुरु कहते हैं (शिक्षा है) कि माँगने से मर जाना बेहतर है ।
माँगन ते मरना भला, यह सतगुरु की सीख ।।
माँगना मरने के बराबर है इसलिए किसी से भीख मत माँगो । सतगुरु कहते हैं (शिक्षा है) कि माँगने से मर जाना बेहतर है ।
Kabir Ke Dohe
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लूट सके तो लूट ले, सन्त नाम की लूट ।
पीछे फिर पछताओगे, प्रान जाहिं जब छूट ।।
भगवान के नाम का स्मरण कर ले नहीं तो समय व्यतीत हो जाने पर पश्चात्ताप करने से कुछ लाभ नहीं है । कबीर जी कहते हैं कि हे जीव, तू भगवान का स्मरण कर ले नहीं तो मृत्यु के समय तथा उपरांत पश्चात्ताप करना पड़ेगा अर्थात नरक के दुसह दुखों को भोगना पड़ेगा ।
पीछे फिर पछताओगे, प्रान जाहिं जब छूट ।।
भगवान के नाम का स्मरण कर ले नहीं तो समय व्यतीत हो जाने पर पश्चात्ताप करने से कुछ लाभ नहीं है । कबीर जी कहते हैं कि हे जीव, तू भगवान का स्मरण कर ले नहीं तो मृत्यु के समय तथा उपरांत पश्चात्ताप करना पड़ेगा अर्थात नरक के दुसह दुखों को भोगना पड़ेगा ।
Kabir Ke Dohe
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लघुता से प्रभुता मिले, प्रभुता से प्रभू दूरि ।
चींटी ले शक्कर चली, हाथी के सिर धूरि ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि लघुता से प्रभुता मिलती है । और प्रभुता से प्रभु दूर रहते हैं, जिस प्रकार छोटी-सी चींटी लघुता के कारण शक्कर पाती है और हाथी के सिर पर धूल पड़ती है ।
चींटी ले शक्कर चली, हाथी के सिर धूरि ।।
कबीरदास जी कहते हैं कि लघुता से प्रभुता मिलती है । और प्रभुता से प्रभु दूर रहते हैं, जिस प्रकार छोटी-सी चींटी लघुता के कारण शक्कर पाती है और हाथी के सिर पर धूल पड़ती है ।
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