Kabir Ke Dohe
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए
चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, जो कलेजे में दर्द उठाता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए
चिंता रूपी चोर सबसे खतरनाक होता है, जो कलेजे में दर्द उठाता है. इस दर्द की दवा किसी भी चिकित्सक के पास नहीं होती.
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पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए
ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए
कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है. बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है.
ढाई आखर प्रेम के, पढ़ा सो पंडित होए
कबीर कहते हैं कि किताबें पढ़ कर दुनिया में कोई भी ज्ञानी नहीं बना है. बल्कि जो प्रेम को जान गया है वही दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी है.
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जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग
जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बाद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ निराशा हाथ लगेगी.
तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग
जिस तरह तिल में तेल होने और चकमक में आग होने के बाद दिखलाई नहीं पड़ता. ठीक उसी तरह ईश्वर को खुद के भीतर खोजने की जरूरत है. बाहर खोजने पर सिर्फ निराशा हाथ लगेगी.
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साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए
मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए
यहां कबीर ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए. न कम और न ज्यादा. कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे.
मैं भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए
यहां कबीर ईश्वर से सिर्फ उतना ही मांगते हैं जिसमें पूरा परिवार का खर्च चल जाए. न कम और न ज्यादा. कि वे भी भूखे न रहें और दरवाजे पर आया कोई साधू-संत भी भूखा न लौटे.
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धीरे-धीरे रे मन, धीरे सब-कुछ होए
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए
दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं, हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और समय आने पर ही फल फलते हैं.
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए
दुनिया में सारी चीजें अपनी रफ्तार से घटती हैं, हड़बड़ाहट से कुछ नहीं होता. माली पूरे साल पौधे को सींचता है और समय आने पर ही फल फलते हैं.
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ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए
हमेशा ऐसी बोली और भाषा बोलिए कि उससे आपका अहम न बोले. आप खुद भी सुकून से रहें और दूसरे भी सुखी रहें.
अपना तन शीतल करे, औरन को सुख होए
हमेशा ऐसी बोली और भाषा बोलिए कि उससे आपका अहम न बोले. आप खुद भी सुकून से रहें और दूसरे भी सुखी रहें.
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काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब
कल का काम आज ही खत्म करें और आज का काम अभी ही खत्म करें. ऐसा न हो कि प्रलय आ जाए और सब-कुछ खत्म हो जाए और तुम कुछ न कर पाओ.
पल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब
कल का काम आज ही खत्म करें और आज का काम अभी ही खत्म करें. ऐसा न हो कि प्रलय आ जाए और सब-कुछ खत्म हो जाए और तुम कुछ न कर पाओ.
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बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता. बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है. जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं.
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
इस दोहे के माध्यम से कबीर कहना चाहते हैं कि सिर्फ बड़ा होने से कुछ नहीं होता. बड़ा होने के लिए विनम्रता जरूरी गुण है. जिस प्रकार खजूर का पेड़ इतना ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और न ही उसके फल ही आसानी से तोड़े जा सकते हैं.
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बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय
जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला. और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला.
जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय
जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला. और जो मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं मिला.
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